नई दिल्ली
केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में कड़ाके की ठंड के बावजूद हजारों किसान 26 नवंबर से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर डटे हुए हैं। किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच अब तक हुई नौ दौर की बातचीत बेनतीजा रही है। अब तक 60 से अधिक किसानों ने दम तोड़ चुके हैं। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार देश के किसानों को ‘थकाने और झुकाने’ की साजिश कर रही है। काले कानून खत्म करने की बजाय, 40 दिन से ‘मीटिंग-मीटिंग’ खेल किसानों को ‘तारीख पर तारीख’ दे रही है।
इन सब के बीच केंद्र सरकार तीन नए कृषि कानूनों को लेकर अड़ी हुई है। पार्टी सूत्रों के अनुसार खबर है कि केंद्र सरकार के इस रवैये के पीछे पार्टी के अभियान और अपने नेताओं से मिला फीडबैक है। भाजपा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंति 25 दिसंबर को को सुशासन दिवस के रूप में मनाती है। पिछले महीने इस दिन से ही पार्टी ने किसानों के साथ हजारों बड़ी बैठकें की। इसके अलावा एक लाख से अधिक किसान पंचायतें भी आयोजित की गईं। इन बैठकों में किसानों को नए कृषि कानून के जरिये आने वाले बदलावों के बारे में जानकारी दी गई।
तीन फेज में आयोजित किया गया कार्यक्रम
भाजपा के पार्टी कैडर ने ब्लॉक और गांव के स्तर पर तीन फेज का कार्यक्रम बनाया। इसके तहत किसानों के साथ बातचीत की गई। इसमें किसानों को कृषि कानून से जुड़ी बुकलेट भी दी गई। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मत है कि कुछ किसान समूहों के विरोध को पूरे किसानों की भावना नहीं माना जा सकता है। भाजपा महासचिव और राज्यसभा सांसद अरुण सिंह ने कहा कि पार्टी के देशव्यापी अभियान के दौरान मैंने व्यक्तिगत रूप से कई किसानों से बातचीत की है। उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं मिला है जिसमें किसानों ने इन कानूनों के खिलाफ बातचीत की हो।
किसान नेताओं में विश्वसनीयता का संकट