23 दिसंबर 1912 का दिन था। रास बिहारी बोस गवर्नर जनरल लार्ड चार्ल्स हार्डिंग की हत्या करने का मन बना चुके थे। इस दिन लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पहली बार कोलकाता आने वाले थे। बंगाल के युवा क्रांतिकारी बसंत कुमार विश्वास को बम फेंकने की जिम्मेदारी दी गई। योजना थी कि लार्ड हार्डिंग हाथी पर बैठकर आएंगे और इतनी ऊंचाई पर सिर्फ बसंत कुमार विश्वास ही बम फेंक सकते हैं।
जब गवर्नर जनरल की सवारी निकली तो चांदनी चौक पर रास बिहारी और बसंत कुमार पहले से मौजूद थे। बम फेंका और जोरदार विस्फोट से इलाके में भगदड़ मच गई। घटना के बाद सभी को लगा कि हॉर्डिंग की मौत हो गई। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, हार्डिंग घायल हुए और उनका हाथी मारा गया। रास बिहारी की ये कोशिश नाकाम हुई। इसके तुरंत बाद वो देहरादून लौट आए और सुबह ऑफिस जाकर पहले की तरह काम करने लगे।
बोस उस समय फॉरेस्ट रिसर्च सेंटर देहरादून में क्लर्क की नौकरी करते थे। हार्डिंग की जान को खतरा देख अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों की धरपकड़ शुरू कर दी। गिरफ्तारी का खतरा देख बोस जापान चले गए। अंग्रेज सरकार उनके पीछे पड़ गई। इस दौरान बोस ने जापान में 17 ठिकाने बदले। उन्हें जापान के एक ताकतवर नेता ने अपने घर में छुपाया। 21 जनवरी 1945 को उनका निधन हो गया।
आज हिंद फौज के निर्माताओं में से एक
अगर आजाद हिंद फौज की बात करें, तो सबसे पहले दिमाग में सुभाष चंद्र बोस का ख्याल आता है। लेकिन, इसमें भी रास बिहारी का बड़ा रोल था। 1943 में सुभाष चंद्र बोस भारत छोड़कर जर्मनी पहुंचे। रास बिहारी ने सुभाष चंद्र को बैंकॉक लीग की दूसरी कॉन्फ्रेंस में बुलाया। 20 जून को सुभाष चंद्र टोक्यो पहुंचे।
5 जुलाई को नेताजी का जोरदार स्वागत हुआ। उस समय रास बिहारी इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के प्रेसिडेंट थे। उन्होंने लीग और इंडियन नेशनल आर्मी की कमान नेताजी को सौंप दी। इसके बाद रास बिहारी सलाहकार की भूमिका में रहे। जापान सरकार ने अपने दूसरे बड़े अवॉर्ड ऑर्डर ऑफ दी राइजिंग सन से सम्मानित किया था।