उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली छह साल की गरिमा उर्फ परी भी मुंबई की की तीरा और मेरठ की की ईशानी की ही तरह लाइलाज बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) से ग्रसित है। वह अपने पैरों पर चल नहीं सकती है। परी का इलाज एक ऐसे इंजेक्शन से होना है, जिसकी कीमत 22 करोड़ रुपए है। लेकिन परिवार की आर्थिक हालत इतनी ठीक नहीं है कि वह इस बड़ी रकम को जुटा सके। परिवार ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री योगी से इलाज में मदद की गुहार लगाई है।
शाहपुर आवास विकास कालोनी निवासी मुक्तिनाथ गुप्ता एक प्राइवेट डॉक्टर की कार चलाकर परिवार का भरण पोषण करते हैं। 3 अक्टूबर 2014 को उनकी पत्नी ममता गुप्ता ने परी को जन्म दिया था। पांच माह तक वह एक स्वस्थ बच्ची की तरह थी। लेकिन उसके बाद उसके शरीर के निचले हिस्से ने हलचल करना बंद कर दिया।
दो साल पहले बीमारी का पता चला
मुक्तिनाथ गुप्ता बताते हैं कि वे बच्ची को इलाज के लिए डाक्टर के पास लेकर गए। तब डॉक्टरों ने कैल्शियम और विटामिन की गोली देने के बाद सब कुछ ठीक होने की बात कही। लेकिन इन दवाओं से उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। परी के बड़े होने के साथ ही उसकी समस्या बढ़ने लगी। अब न ही वह अपने पैरों पर चल सकती है और न ही उठ-बैठ सकती है। वह पूरी तरह से माता-पिता पर निर्भर है। परी की मां ममता गुप्ता बताती हैं कि BRD मेडिकल कालेज में इलाज चला। लेकिन डाक्टर बीमारी पकड़ नहीं सके। साल 2017 में वो दो साल की हुई, तब वे उसे लेकर एम्स दिल्ली गए। वहां पर डाक्टरों ने उसके पैर की मांसपेशियों को काटकर जांच के लिए भेजा।
जांच रिपोर्ट में पता चला कि उसे रेयर बीमारी ‘SMA Type-1’ है। परी LKG में पढ़ती है। न्यूरो सर्जन डा. अजय कुमार सिंह अपने ड्राइवर मुक्तिनाथ की बेटी गरिमा की पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं। उनकी मदद से ही वो पढ़ रही है। PM नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मदद की गुहार लगाते हुए ममता कहती हैं कि वे उनकी बेटी का इलाज कराने में मदद करें। जिससे उनकी बेटी चलने-फिरने और अपना काम करने के साथ भविष्य बना सकें।
पांच साल से मुफ्त इलाज दे रहीं डॉक्टर सपना सिंह
बाल रोग विशेषज्ञ डा. सपना सिंह बीते पांच साल से परी का इलाज मुफ्त में कर रही हैं। वे कहती हैं कि परी को प्रोग्रेसिव स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी की गंभीर बीमारी है। इससे मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है।कमर के नीचे का हिस्सा काम नहीं करता है। उसे बार-बार निमोनिया हो जाता है। उसकी रेस्पाइरेट्री कम्प्रोमाइज है। इसके अलावा वो एलर्जिक भी है। उम्र बढ़ने के साथ बीमारी गंभीर होती जाती है। बार-बार चेस्ट में इंफेक्शन होता है। यही मौत की वजह बन जाता है।
क्या है SMA बीमारी?
स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी (SMA) बीमारी वाले बच्चों के शरीर में प्रोटीन बनाने वाला जीन नहीं होता। इससे मांसपेशियां और तंत्रिकाएं (Nerves) खत्म होने लगती हैं। दिमाग की मांसपेशियों की एक्टिविटी भी कम होने लगती है। ब्रेन से सभी मांसपेशियां संचालित होती हैं, इसलिए सांस लेने और खाना चबाने तक में दिक्कत होने लगती है। SMA कई तरह की होती है। Type-1 सबसे गंभीर बीमारी है। देश में अभी तक 5 लोगों और दुनिया में करीब 600 लोगों को SMA बीमारी के इलाज के लिए जोल्जेंसमा का इंजेक्शन लगा है। जिन्हें लगा उन्हें भी 60 % ही फायदा मिला।
स्विट्जरलैंड की कंपनी बनाती है इंजेक्शन
बताया गया कि स्विटजरलैंड की कंपनी नोवार्टिस जोलगेन्स्मा यह इंजेक्शन तैयार करती है। नोवार्टिस कंपनी दुनियाभर के 50 लोगों को यह दवाई मुफ्त में देती है, लेकिन वह रेंडमली सेलेक्टेड मरीजों को ही मिलती है। ईशानी का रजिस्ट्रेशन मुफ्त मिलने वाले टीके की प्रक्रिया के लिए कर दिया गया है, लेकिन उसके लिए इंतजार करना बेटी की जान के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। ईशानी के पिता अभिषेक ने मदद के लिए सोशल मीडिया पर मदद के लिए कैंपेन शुरू कर दिया है। इसके लिए मिलाप और इम्पैक्ट गुरू जैसी वेबसाइट पर प्रोफाइल बनाकर लोगों से मदद की गुहार की है।