पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के नेता हर दिन किसी नए मामले में भ्रष्टाचार के आरोपी बनकर सामने आ रहे हैं। लेकिन इस बार तो हद ही हो गई है क्योंकि एक जांच में सामने आया है कि मनरेगा के तहत मिलने वाला पैसा टीएमसी के नेताओं और उप-प्रधानों द्वारा बांग्लादेशियों तक को ट्रांसफर किया जा रहा है। इन पैसों को निकालने के लिए फर्जी नौकरी के कार्ड तक बनाए गए थे, जिसके बाद टीएमसी के ग्राम पंचायत के उप-प्रधान के खिलाफ जांच जारी है लेकिन वो फरार है। ऐसे में ये सवाल फिर खड़े होने लगे हैं क्या ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के नेताओं को बांग्लादेशियों से इतना प्रेम क्यों हैं ?
मनरेगा का पैसा बांग्लादेशियों के पास… कितना अजीबोगरीब मामला है न ? लेकिन ये पश्चिम बंगाल के ममता राज में हुआ है, जिसकी जांच मुर्शिदाबाद जिला में प्रशासन ने ही की है। इस जांच में सामने आया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (मनरेगा) के तहत लाभार्थियों के लिए कम से कम 7 लाख रुपये एकत्र किए गए थे, और वो सारी रकम बांग्लादेशियों को दे दी गई है। इस पूरे मामले के मुख्य आरोपी नबाग्राम थाना क्षेत्र के तृणमूल कांग्रेस के ग्राम पंचायत के उप-प्रधान है।
इस मामले में अधिकारियों का कहना है कि उप-प्रधान समसुल अरफिन ने अपने रिश्तेदारों के फर्जी जॉब कार्ड बनवाए, जिनमें से 13 बांग्लादेशी नागरिक हैं। कथित तौर पर एक ही लाभार्थियों के नाम बदलकर विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियां पैदा की गईं और पैसा बैंकों और डाकघरों से निकाला गया। एटीएम कार्ड का भी इस्तेमाल पैसे की निकासी के लिए किया जाता था। आंतरिक जांच ने निष्कर्ष निकाला कि आरफिन और ग्राम पंचायत के कुछ कर्मचारी कथित धोखाधड़ी में शामिल थे।
अरफिन ने अग्रिम जमानत के लिए कोलकता उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जो कि खारिज कर दी गई, इसके बावजूद आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया। एक वरिष्ठ जिला अधिकारी ने कहा कि कई प्रयासों के बावजूद अरफिन से संपर्क नहीं किया जा सका है और वो शायद अब भाग गया है। इस पूरे मामले के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पूरी पार्टी पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि ये इलाका अपने आप में विशेष है।