जहां पुलिस पहुंच नहीं पाती ऐसे उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में मीडिया की टीम ने एक सप्ताह की गहन पड़ताल, अफीम के खरीदार बन खूंटी, रांची और चाईबासा के जंगली क्षेत्रों में संगठन के सहयोगियों व ग्रामीणों से जाना इनका नया धंधा… उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) एक माह से झारखंड में काफी चर्चा में है। बीते 21 और 22 दिसंबर को उसके दो एरिया कमांडर को पुलिस ने मार गिराया। एक तो पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप का राइट हैंड था। 4 दिसंबर को झारखंड पुलिस ने पीएलएफआई के इनामी नक्सलियों की तस्वीर भी सार्वजनिक की थी।
इसके बाद संगठन के गढ़- खूंटी, रांची और चाईबासा में उसकी गतिविधियाें की छानबीन की गई। पता चला कि इसने अपनी मोडस ऑपरेंडी बदल दी है। कोराेना के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में पुल-पुलिया का निर्माण रुकने से लेवी वसूली रुक गई तो संगठन उग्रवाद की आड़ में रांची, खूंटी, चाईबासा क्षेत्र में वन विभाग की एक हजार एकड़ से अधिक जमीन पर अफीम की खेती करा रहा है। इस धंधे पर पुलिस की नजर न पड़े इसलिए अब तक रांंची के 10 बड़े कारोबारियों से कुल 10 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी है। ताकि पुलिस अफसर रंगदारी की पड़ताल में उलझे रहें और अफीम की फसल अरबों के मुनाफे में तब्दील हो जाए। दिसंबर में लगाई अफीम मार्च में तैयार होकर घरेलू बाजार में 200 करोड़ में बिकेगी।
नया गेम प्लान
- बीज पहुंचाने से माल बेचने तक काम कर रहा अफीम सिंडिकेट
- यूपी, बिहार, बंगाल, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र से आ रहे खरीदार
- बेरोजगाराें को पैसे दे शहर के कारोबारियों की करा रहा रेकी
सबसे बड़ा सवाल
खुलेआम खेती तो प्रशासन को कैसे नहीं जानकारी?
अफीम का गणित…
1 एकड़ जमीन से 45 किलो अफीम 1 किलो का दाम 40-50 हजार तक
खूंटी में लंबे समय तक अपनी सेवा देने वाले दो पुलिस अधिकारियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि हाल में अफीम के धंधा में बड़ा सिंडिकेट जुड़ गया है। इस धंधे में कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई के कई तस्कर शामिल हैं, जो खूंटी का अफीम बांग्लादेश सहित अन्य देशों तक पहुंचाते हैं।
इंवेस्टमेंट और प्रॉफिट का गुणा-भाग
- एक एकड़ जमीन पर लगी अफीम से लगभग 45 किलो अफीम होती है। स्थानीय बाजार में इसकी कीमत 40 से 50 हजार रुपए प्रति किलोग्राम है।
- एक हजार एकड़ जमीन पर खेती का मतलब है 45 हजार किलो अफीम। यानी स्थानीय बाजार में इसका मूल्य 200-225 करोड़ रुपए होगा। लेकिन इंटनेशनल मार्केट में इसकी कीमत 400-500 करोड़ रुपए है।
आखिर कौन देगा जवाब
1. आखिर वन विभाग की जमीन कैसे घेर लेते हैं उग्रवादी, कहीं यह मिलीभगत तो नहीं?
2. आखिर स्थानीय ग्रामीण, पुलिस, एसपीओ सभी प्रशासन को खबर क्यों नहीं देते?
3. अफीम लगते ही तस्करों का आना शुरू होता है, पर पुलिस को सूचना क्यों नहीं मिलती?
खबर साभार : भास्कर